हम एक दुसरे के बारे में आज बहुत कुछ जानते हैं ( तीसरा पन्ना )

0
शायद अगर उस रात मैंने उससे बात नहीं की होती तो आज हम एक-दूसरे को नहीं जानते। अब मैं इसे करामात कहूँ या इत्तेफाक लेकिन जो भी हो, उससे बात करना मुझे अच्छा लगता है। उसकी सादगी और समझदारी उसकी बातों में साफ झलकती है और यही बात मुझे सबसे ज्यादा पसंद है।
शुरुआत में हम सिर्फ सोशल मीडिया पर ही बात करते थे लेकिन जब हम एक-दूसरे को जान गए तो हमने नंबर भी साझा कर लिए और फिर कॉल पर बात होने लगी। जब मैं ऑफिस जाता और वहां काम न होता तो हम मैसेज पर बात करते रहते और यह सिलसिला रोज़ का था।
एक वाकया मुझे अभी याद आ रहा है। एक दिन हम सोशल मीडिया ऐप पर मैसेज कर रहे थे तभी उसकी तरफ से अचानक वीडियो कॉल आया लेकिन कुछ सेकंड में ही कट गया। मैंने पूछा "क्या हुआ, वीडियो कॉल क्यों किया था?" तब उसने कहा, "गलती से वीडियो कॉल का बटन दब गया था।" पता है, उस वक्त मैं क्या सोच रहा था? शायद उसने मुझे देखना चाहा होगा, इसीलिए वीडियो कॉल की होगी। लेकिन उसके मन में ऐसा कुछ नहीं था मैं ही बेवजह ज्यादा सोच रहा था।

ravanisafar

हम बहुत दिनों तक सिर्फ मैसेज पर ही बात करते रहे। एक दिन उसने सोशल मीडिया ऐप से ही वॉयस कॉल की और हम दोनों देर तक बात करते रहे। यह सिलसिला भी कुछ दिनों तक चला। फिर एक दिन मैंने अपने मोबाइल नंबर के शुरू के दो और अंत के दो अंक उसे मैसेज कर दिए और कहा "कभी कॉल पर बात करने का मन हो तो कॉल ज़रूर कीजिएगा।" उसने भी ऐसा ही किया, शुरू के दो और अंत के दो अंक भेज दिए।
अब तक हम सोशल मीडिया ऐप पर ही वॉयस कॉल करते थे लेकिन अब हम फोन कॉल पर भी बात करने लगे। जब हमारी बातचीत शुरू हुई थी तब हमारी बातचीत में हंसी-मजाक एक-दूसरे को जानने की कोशिश ज्यादा रहती थी। वैसे, आज भी बातचीत का तरीका वही है, पर कुछ चीजों में बदलाव आ गया है।
एक दिन की बात है ऑफिस में काम नहीं था तो मैंने उसे "Hi, kaise ho?" लिखकर मैसेज किया। थोड़ी देर बाद उसका मैसेज आया, "Hi, main thik hoon, aap kaise ho?" फिर हमारे बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। मैं उसका हाल-चाल पूछ रहा था, और वो मुझसे मेरे ऑफिस के काम के बारे में सवाल करने लगी। वैसे यह रोज़ का सिलसिला था लेकिन उस दिन की बात कुछ अलग थी।
उस दिन मैंने उसे मेरे मोबाइल नंबर के बीच के छह अंक मैसेज कर दिए। उसने भी अपने नंबर के छह अंक मुझे भेज दिए। हमारी बातचीत में हमेशा इज्जत, शालीनता और समझदारी बनी रहती थी और अब भी वैसी ही है। क्योंकि जब दो अंजान लोग आपस में बात करते हैं तो हमेशा संभलकर बात करते हैं उसी तरह हम भी बात कर रहे थे।
काफी देर तक बात करने के बाद मुझे कलेक्टर सर के साथ कहीं जाना पड़ा। फिर मैंने उसे "Bye" कहा और निकल गया। 

Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)