
मिचनार – एक सफ़र, जो दिल को छू गया
लेखक: पुचकु | श्रेणी: यात्रा अनुभव | स्थान: मिचनार, बस्तर
कभी-कभी कुछ जगहें हमें सिर्फ़ अपनी खूबसूरती से ही नहीं, बल्कि अपने एहसासों से भी बाँध लेती हैं। वो जगहें हमारी यादों में हमेशा जिंदा रहती हैं। मेरे लिए मिचनार पहाड़ ऐसी ही जगह है।
मैं अब तक तीन बार वहाँ जा चुका हूँ, लेकिन पहली बार का अनुभव मेरे लिए बेहद खास रहा। उस दिन की सुबह, वो सफ़र और उसके साथ बिताए गए पल – आज भी दिल को उसी तरह छू जाते हैं जैसे तब छुए थे।
शुरुआत एक ख्वाब से
मिचनार के बारे में मैंने सबसे पहले अपने दोस्तों से सुना था। जब उन्होंने वहाँ की खूबसूरती का ज़िक्र किया और कुछ तस्वीरें दिखाईं, तो मन में एक ख्वाब सा बनने लगा। तस्वीरों में पहाड़ का दृश्य इतना मनमोहक था कि लगता था जैसे स्वर्ग की कोई झलक हो। मैं बार-बार सोचता कि कब मौका मिलेगा और कब मैं भी उन रास्तों से गुजरूँगा। लेकिन ज़िंदगी की भागदौड़ में वह मौका आने में लगभग एक साल लग गया।
फिर एक दिन अचानक तय हुआ कि हम दोनों मिचनार चलेंगे। वो फैसला जैसे मेरे ख्वाब को हकीकत बनाने जैसा था।
रास्तों की खूबसूरती
अगली सुबह हम बाइक से निकल पड़े। बाइक की रफ़्तार के साथ जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए, हर मोड़ पर प्रकृति हमें अपनी नई-नई छवियों से चौंकाती रही। कहीं सड़क सीधी रेखा में फैली हुई थी, तो कहीं हरे-भरे जंगलों के बीच से गुजरती। गाँवों के बीच से गुजरते हुए बच्चों की मुस्कान और खेतों में काम करते लोगों का दृश्य इस सफ़र को और जीवंत बना रहा था।
मंदिर और गुफा का रहस्य
आखिरकार हम मिचनार पहुँच गए। पहाड़ के नीचे एक छोटा सा मंदिर है, जहाँ हमने नारियल चढ़ाया और अपनी बाइक पार्क कर दी। मन में उत्सुकता थी कि ऊपर जाकर कैसा दृश्य मिलेगा।
जैसे ही चढ़ाई शुरू की, तो पता चला कि ऊपर एक गुफा भी है जिसमें देवी विराजमान हैं। गाँव के लोगों ने बताया और हम मोबाइल की टॉर्च जलाकर गुफा के अंदर गए। वहाँ की शांति, ठंडी हवा और पत्थरों की अद्भुत बनावट ने मुझे भीतर तक छू लिया। देवी के दर्शन करके मन को एक अनकही शांति मिली।
लकड़ी की सीढ़ियाँ और पहाड़ की चोटी
गुफा से आगे बढ़ने के बाद लकड़ी की सीढ़ियाँ दिखाई दीं। इन्हीं सीढ़ियों के सहारे हम पहाड़ की चोटी तक पहुँचे। ऊपर पहुँचकर जो दृश्य सामने था, उसने जैसे सारी थकान को पलभर में मिटा दिया। चारों ओर फैले पहाड़, दूर-दूर तक फैली हरियाली और आसमान के नीचे प्रकृति की गोद में बैठना – यह किसी जादू से कम नहीं था।
धूप तेज थी, इसलिए हम एक पेड़ की छाँव में बैठ गए। वहाँ बैठकर हवा के झोंकों के साथ सामने के नज़ारों को देखना ऐसा अनुभव था जिसे शब्दों में पूरी तरह नहीं बताया जा सकता।
आत्मा को छूने वाला पल
हमने काफी देर वहाँ बिताई। उस दौरान ऐसा लगा जैसे समय ठहर गया हो। शहर की भागदौड़, कामकाज और चिंताएँ सब पीछे छूट गई थीं। वहाँ सिर्फ़ हम थे, प्रकृति थी और एक अजीब सी आत्मीय शांति थी।
मेरे लिए खास क्यों रहा यह सफ़र
मुझे जंगल, पहाड़, झरने और सफ़र से बेहद लगाव है। शायद इसी वजह से मिचनार का यह अनुभव मेरे दिल में बस गया। लेकिन असली वजह सिर्फ़ प्रकृति नहीं थी, बल्कि उस सफ़र में उसका साथ था। जब आप किसी खास इंसान के साथ यात्रा करते हैं तो रास्तों की खूबसूरती दोगुनी हो जाती है, और यादें हमेशा के लिए दिल में बस जाती हैं।
मिचनार मेरे लिए सिर्फ़ एक जगह नहीं, बल्कि एहसासों का खजाना है। हर बार जब मैं वहाँ जाता हूँ, तो लगता है कि मैं खुद से और प्रकृति से एक बार फिर जुड़ गया हूँ।
और पहली बार का वो सफ़र… शायद मेरी ज़िंदगी की सबसे अनमोल यादों में से एक रहेगा।
