बीजापुर की यात्रा : सफ़र का 13 वां पन्ना, नम्बी झरने तक का सफ़र

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बीजापुर यात्रा: नम्बी झरना तक का रोमांचक सफ़र | Bastar Waterfall Travel Story


बीजापुर की यात्रा : एक अधूरी याद और नम्बी झरने तक का सफ़र

सितम्बर का महीना था। उसने मुझे बस्तर के एक नए झरने के बारे में बताया और कहा किसी दिन हम वहाँ चलेंगे।” मैंने भी मुस्कुराकर हामी भर दी, लेकिन समय की कमी के कारण वो महीना गुजर गया। दीपावली नज़दीक थी, इसलिए मैं घर चला गया। वैसे सच कहूँ तो मुझे त्यौहारों की भीड़-भाड़ से ज़्यादा सुकून देने वाली यात्राएँ पसंद हैं, लेकिन घरवालों का इंतज़ार देख मैं मना नहीं कर सका। बहुत दिनों बाद घर लौटना था। जैसे ही ऑफिस से छुट्टी मिली, मैंने बाइक उठाई और घर के लिए निकल पड़ा। दरअसल, मैं बस से जाना चाहता था, पर कोंडागांव से नारायणपुर को जोड़ने वाली सड़क पर निर्माण कार्य चल रहा था। बारिश के बाद से काम ठप पड़ा था, और सड़क की हालत इतनी ख़राब थी कि बसें उस रास्ते पर बंद थीं। इसलिए मैंने नेशनल हाईवे 30 का रास्ता चुना।


चर्रे मर्रे घाटी की यादें

मेरे घर के रास्ते में अंतागढ़ के पास एक खूबसूरत जगह पड़ती है चर्रे मर्रे वाटरफॉल। घुमावदार घाटी, पहाड़ों के बीच झरते पानी की आवाज़ और हवा का ठंडा झोंका… ये सब मन को सुकून देते हैं। मैं वहाँ कई बार जा चुका हूँ, इसलिए इस बार झरना देखने के बजाय सीधा घर की ओर निकल गया। घर पहुँचने के अगले दिन घर के ज़रूरी सामान की खरीदारी में दिन निकल गया। दीपावली भी यूँ ही गुजर गई। मैं कुछ दिन और रुकना चाहता था, पर ऑफिस से कॉल आया और मुझे लौटना पड़ा। शहर लौटने के बाद पता चला कि किसी कारणवश प्रोटोकॉल बदल गया है। अचानक मेरे मन में ख्याल आया क्यों न इस खाली समय को एक सफ़र में बदल दूँ?


फिर तय हुआ एक सफ़र

मैंने उसे कॉल किया और सारी बात बताई। पूछा “जो हमने पहले तय किया था, क्या अब उस सफ़र पर निकला जाए?” वो तैयार थी। मैंने कहा “जगह तुम तय करना, मैं तो कहीं भी चलने को तैयार हूँ।” रात तक हमने जगह तय करने का निश्चय किया, ताकि सुबह 10 बजे तक निकल सकें। रात में खाना खा कर जब हमारे बिच फ़ोन पर बात हुई तो तय हुआ की हम बीजापुर चलते हैं।” बस, फिर क्या था अगली सुबह हम बीजापुर की यात्रा पर निकल पड़े।




रास्ते की सुंदरता और यादों के निशान

हम भानपुरी से होकर चित्रकोट के रास्ते बारसूर की ओर बढ़े। बारसूर पहुँचने से पहले एक छोटी नदी आती है, जो मेरी पसंदीदा जगहों में से एक है। वहाँ पहुँचकर मन भारी हो गया वो जगह अब बाढ़ से बर्बाद हो चुकी थी। यादें तैरने लगीं... उसी नदी के किनारे मैंने पहली बार उसका हाथ थामा था। वहीं हमने कई तस्वीरें खींचीं थीं हमारी हँसी, हमारे पल अब सिर्फ़ तस्वीरों में रह गए थे। थोड़ी देर रुककर हमने कुछ फोटो लीं और आगे निकल पड़े। गीदम पहुँचने से पहले ही हमने एक शॉर्टकट रास्ता पकड़ लिया, जो सीधे बीजापुर जाने वाले हाईवे से जुड़ता था। सड़क अच्छी थी बाइक 80–90 की रफ़्तार पर दौड़ रही थी। सुबह से कुछ नहीं खाया था, इसलिए एक छोटे बाज़ार में रुककर केले खरीदे। रास्ते में कहीं छाँव देखकर रुक गए, केले खाए और फिर सफ़र जारी रखा।




बारिश का साथ

सफ़र शानदार था। पहाड़, जंगल और हवा सब कुछ मानो हमारे साथ चल रहे थे। लेकिन थोड़ी देर में आसमान घिर आया और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। हम पास के एक घर में जा घुसे, जहाँ पहले से ही कुछ लोग बारिश से बचने के लिए बैठे थे। बारिश थमी तो फिर से रास्ते पर निकल पड़े, लेकिन थोड़ी ही दूर जाकर फिर बारिश आ गई। इस बार हमने सड़क किनारे की एक बच्चों का एक सरकारी होस्टल पर शरण ली। जब बारिश कुछ थमी, तब आगे की यात्रा शुरू की। शाम होते-होते हम आखिरकार बीजापुर पहुँच गए।


बीजापुर की रात और अगली सुबह की शुरुआत

मैंने अपने एक दोस्त को कॉल किया। वो वहीं रहता है। उसने लोकेशन बताया, लेकिन हम उसके कमरे से एक किलोमीटर आगे निकल गए थे। थोड़ी देर में उसके कमरे में पहुँचे, रात वहीं गुज़री। सुबह की ठंडी हवा और पहाड़ों के बीच उगता सूरज, नई यात्रा का संकेत दे रहा था। आज हमारा गंतव्य था नम्बी वाटरफॉल।



नम्बी झरने की ओर

बीजापुर से नम्बी तक लगभग 60 किलोमीटर की दूरी थी। सुबह-सुबह जब हम निकले, तो रास्ता बेहद मनमोहक था। सफेद बादलों से लिपटे पहाड़, हरियाली से ढकी धरती और साफ़-सुथरी सड़कें सब कुछ मानो किसी चित्र जैसा लग रहा था। हम आवापल्ली की ओर मुड़े। यह नाम मैंने पहले घर पर कई बार सुना था, पर यह नहीं जानता था कि नम्बी उसी दिशा में है। रास्ते में हमें BSF के जवान चलते दिखे। सड़क शानदार थी, बाइक 70–80 की रफ़्तार पर दौड़ रही थी। एक जगह इतनी खूबसूरत लगी कि हमने रुककर कुछ तस्वीरें लीं। आवापल्ली पार करने के बाद हम उसूर पहुँचे। वहाँ एक दुकान से चिप्स, चॉकलेट, सोनपापड़ी और पानी खरीदा ताकि रास्ते में कुछ काम आ सके। खरीददारी करने के बाद हम आगे की सफ़र के लिए निकल गये थोड़ी देर बाद पक्की सड़क खत्म हुई और कच्चा रास्ता शुरू हो गया। अब बाइक की गति 15–20 किमी/घंटा रह गई थी। करीब 10 किलोमीटर चलने के बाद हमें एक पैरा मिलिट्री कैंप मिला। एक जवान ने हमें रोककर पूछा कहाँ जा रहे हो?” मैंने मुस्कुराकर कहा “झरना देखने जा रहे हैं।” उन्होंने कहा, “सड़क थोड़ी खराब है, ध्यान से जाना।” हमने धन्यवाद कहा और आगे निकल पड़े। गाँव पहुँचने से पहले ही एक और कैंप पड़ा। यहाँ हमें रोक लिया गया। उन्होंने नाम, पता, आधार नंबर, मोबाइल सब नोट किया और बाइक नंबर भी लिख लिया। हमने सब बताया और अनुमति मिलने के बाद आगे बढ़े। घड़ी में नौ बज रहे थे। सामने से जवान जंगल से लौट रहे थे, उनके साथ कुछ ग्रामीण भी थे। उन्हें देखते हुए हम आगे बढ़े। कुछ ही दूरी पर एक टी-पॉइंट आया। हम थोड़ा उलझ गए कि किस रास्ते जाना है। एक जवान से पूछा तो उसने इशारे से बताया “वो रहा झरना।” मैंने जब मुड़कर देखा तो दूर से पानी की सफ़ेद धारियाँ चट्टानों से गिरती दिखाई दीं। दिल खुशी से भर गया। हम बाइक को धीरे-धीरे झरने की दिशा में ले गए। जहाँ तक रास्ता था, वहाँ तक पहुँचे। फिर बाइक खड़ी की और पैदल चलना शुरू किया। लगभग 500 मीटर ढलान पर चलने पर सामने था नम्बी वाटरफॉल कई मीटर ऊँचाई से गिरता पानी, चारों ओर हरियाली और पहाड़ों के बीच गूँजती उसकी गर्जना।

हम वहीं बैठ गए बिना किसी शब्द के।
सिर्फ़ झरने की आवाज़ और दिल की धड़कनें थीं।




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