हमारी पहली मुलाकात के बाद, 20 नवंबर 2023 को हम दोनों बाइक से दंतेवाड़ा गए थे। यह मेरी जिंदगी का पहला लंबा बाइक सफर था। जहां मैं रहता हूं, वहां से दंतेवाड़ा लगभग 126 किलोमीटर दूर है, और यह मेरे लिए पहली बार था जब मैं बाइक से इतना लंबा सफर कर रहा था। इससे पहले, मैं 2012 में नवरात्रि के समय माँ दंतेश्वरी के दर्शन के लिए अपनी बड़ी दीदी और बड़े भाई के साथ एक बार दंतेवाड़ा गया था, लेकिन बहुत भीड़ होने की वजह से हम दर्शन नहीं कर पाए थे और बिना दर्शन के ही वापस लौट आए थे। इसलिए जब उसने मुझे कॉल करके कहा कि "दंतेवाड़ा मेरे साथ चलोगे?" तो मैं तुरंत सहमत हो गया और साथ चलने के लिए तैयार हो गया।
दरअसल, उसे अपने पुराने कॉलेज से अंकसूची लेनी थी। उसने अपने दोस्तों के साथ अंकसूची लेने का प्लान बनाया, लेकिन जब उसे अंकसूची चाहिए थी, उस समय उसके साथ जाने के लिए कोई तैयार नहीं था। इसलिए, मैं उसके साथ चला गया। हम अंकसूची लेने के बहाने घूमने का भी प्लान बना लिए और सुबह-सुबह दंतेवाड़ा के लिए निकल पड़े।

वह सुबह बस स्टैंड पहुँच गई थी जहाँ हम पहली बार मिले थे। जब मैं उसे बस स्टैंड लेने पहुँचा तो हमें एक महिला बार-बार देख रही थी। वैसे हम दोनों ने चेहरे ढंके हुए थे फिर भी वह हमें देख रही थी। वैसे वह महिला हम दोनों में से किसे देख रही थी यह तो हमें नहीं पता था पर जिस तरह से वह देख रही थी उससे लग रहा था कि वह मुझे ही देख रही थी। मुझे उसे देखकर ऐसा लगा जैसे मैंने उसे कभी ऑफिस के आस-पास देखा हो। खैर हम बस स्टैंड से दंतेवाड़ा के लिए निकल गए। नवम्बर का महीना था यानी सुबह-सुबह कड़कती ठंड। मैं धीरे-धीरे बाइक चला रहा था क्योंकि मैंने हाथों में ग्लव्स नहीं पहन रखे थे क्योंकि मुझे अंदाजा ही नहीं था। हम लोग चित्रकूट वाले रास्ते पर चल दिए। मुझे काफी मजा आ रहा था क्योंकि मैं पहली बार बाइक से कहीं घूमने जा रहा था। पक्की सड़क और ऊपर से सुबह-सुबह खाली सड़क पर बाइक चलाने में और मजा आ रहा था। हम घने जंगलों से होकर गुजर रहे थे। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, मेरी धुंधली यादें ताजा हो रही थीं क्योंकि मैं 2012 में इस रास्ते से गुजर चुका था पर मुझे अच्छे से याद नहीं था। बस घने जंगलों के बीच घाटी में घुमावदार सड़क और एक छोटा सा पुल याद था। क्योंकि हम लोग उस पुल के पास कुछ देर के लिए रुके थे। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वह मुझे रास्ते और खूबसूरत जगहों के बारे में बताती जा रही थी क्योंकि वह रास्ता उसके आने-जाने का था।
हम लोग सुबह 7 बजे के आस-पास दंतेवाड़ा के लिए निकले थे और 10:30 तक दंतेवाड़ा पहुँच गए। हमने प्लान के अनुसार सबसे पहले सीधे दंतेश्वरी माता के मंदिर में दर्शन करने का निर्णय लिया। मैं पहली बार माता के दर्शन कर रहा था वो भी इतने करीब से। हम मंदिर में दर्शन के बाद मंदिर के पीछे संकनी-डंकनी नदी पार करके एक और मंदिर में दर्शन करने गए। दर्शन के बाद बगल में रानी के स्नान के लिए एक तालाब था जहाँ जाकर हम बैठ गए। जब वापस आ रहे थे तो कुछ लोग एक पत्थर को बारी-बारी से उठाने की कोशिश कर रहे थे। हम भी वहाँ चले गए और उस पत्थर को उठाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करने लगे। कुछ देर बाद हमारी भी बारी आई। सबसे पहले मैंने पत्थर को उठाने की कोशिश की और पत्थर उठ भी गया। खास बात यह थी कि पत्थर को एक हाथ से ही उठाना था। मैंने भी एक हाथ से ही पत्थर उठाया और वह उठ गया। हमसे पहले जो लोग कोशिश कर रहे थे वे मुश्किल से पत्थर उठा पा रहे थे। खैर, मैंने पत्थर उठा लिया था अब उसकी बारी थी। उसने भी पत्थर को काफी ऊंचा उठा लिया पर मैं जितना उठाया था उतना नहीं उठा पाई।
इसके बाद हम मुख्य मंदिर की तरफ लौटने लगे। जब वापस आए, तो मंदिर में खिचड़ी बाँटी जा रही थी। हम लोग भी खिचड़ी लेकर वहीं बैठकर खाने लगे। खिचड़ी खाकर हम कॉलेज के लिए निकल गए। मंदिर से कॉलेज ज्यादा दूर नहीं था। कॉलेज पहुँचकर मैंने बाइक को पार्किंग में खड़ी कर दी और वह कॉलेज के अंदर चली गई। उतने में ही मेरे फोन की घंटी बजी और मैं जींस की जेब से फोन निकालकर दोस्त से बात करने लगा। उसे बताया की मैं दंतेवाडा काम से आया हूँ फिर दोस्त ने फोन रख दिया, फिर मैं टाइम पास के लिए बैक में बैठ कर ही फोन को खेलने लगा।
इसके बाद हम मुख्य मंदिर की तरफ लौटने लगे। जब वापस आए, तो मंदिर में खिचड़ी बाँटी जा रही थी। हम लोग भी खिचड़ी लेकर वहीं बैठकर खाने लगे। खिचड़ी खाकर हम कॉलेज के लिए निकल गए। मंदिर से कॉलेज ज्यादा दूर नहीं था। कॉलेज पहुँचकर मैंने बाइक को पार्किंग में खड़ी कर दी और वह कॉलेज के अंदर चली गई। उतने में ही मेरे फोन की घंटी बजी और मैं जींस की जेब से फोन निकालकर दोस्त से बात करने लगा। उसे बताया की मैं दंतेवाडा काम से आया हूँ फिर दोस्त ने फोन रख दिया, फिर मैं टाइम पास के लिए बैक में बैठ कर ही फोन को खेलने लगा।
कुछ देर बाद वह अंकसूची लेकर बाहर आई और फिर हम सातधार जाने के लिए निकल गए। रास्ते में वो बोलने लगी की अगर मेरे दोस्तों को इस बारे में पता चला की मैं कॉलेज अंकसूची लेने आपके साथ आई हूँ तो सब लोग बहुत गाली देंगे। वो अपने ग्रुप में सबसे पहले ही अंकसूची ले ली थी, और इसके बारे में उसके ग्रुप में किसी को भी पता नही था। हम दंतेवाडा से काफी दूर निकल गये फिर रास्ते में कुछ खाने का सामान और पानी की बोतल रख लिए क्योंकि हम सुबह बिना कुछ खाए निकले थे। वैसे हम दोनों ने मंदिर में खिचड़ी खा ली थी इसलिए भूख नहीं लग रही थी पर आगे के लिए इंतजाम कर करना हम दोनों को सही लगा। इस लिए एक जगह रुक कर खाने के सामान खरीद कर रख लिए ताकि जब भूख लगे तो हमारे पास खाने के लिए रहे। रास्ता बहुत ही खूबसूरत था और सड़क भी पक्की थी।