कॉलेज में उसका काम पूरा होने के बाद हम दंतेवाडा से सातधार जाने के लिए निकल गये, जब हम कुछ दुरी तय कर लिए तो एक जगह रुक कर कुछ खाने के सामान और पानी की बोतल रख लिए क्यूंकि सफ़र लम्बा होने वाला था। वैसे हमें भूख तो नही लगी थी क्यूंकि मन्दिर में हमने खिचड़ी खाया था। हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे सफ़र और भी खुबसूरत हो रहा था क्यूंकि हम गाँव, जंगल से गुजर रहे थे। हम जिस रास्ते से जा रहे थे वह रास्ता भी खुबसूरत था जिसका बया मैं नही कर सकता, टेडी-मेडी सड़क सफ़र को और भी दिलचस्प बना रहा था। मैं बहुत खुश था क्यूंकि मैं पहली बार सातधार की खूबसूरती देखने के लिए जा रहा था। और वो भी उसके साथ जिसके मैं साथ जिंदगी गुजारने के बारे में सोचता हूँ। वैसे मेरी दूर की बुआ से सुना था की सातधार बहुत ही खुबसूरत जगह है, और उसने मुझे बोला भी था की अगर कभी मौंका मिला तो उस जगह पर जरुर जाना, मैं बाइक चलाते हुए उस बात को याद कर रहा था और सोच रहा था की फाइनली अब मेरा सातधार जाने की सपना पूरा हो रहा है। यह सब उसके वजह से पूरा हो रहा था।
खुबसुरत सड़क और सड़क के दोनों तरफ की हरियाली यह देख कर मैं बहुत खुश हो रहा था। मैं उस सफ़र की खूबसूरती को शब्दों में बया नही कर सकता, क्यूंकि हम जिसे पसंद करते हैं उसके साथ सफ़र में निकल जाना मानो एक अलग ही फिलिंग होता है और फिलिंग को शब्दों में बया करना तो मैं सिखा नही हूँ। खैर अगर उस खूबसूरती को देखना है और महसूस करना है तो आपको एक बार बाइक से उस रास्ते पर गुजरना होगा। वो सड़क, पेड़-पौधे, कच्चे घर सब कुछ खुबसुरत हैं।
आज जब मैं उन लम्हों को शब्दों में पिरोने की की कोशिश कर रहा हूँ तो मैं कुछ क्षण के लिए ही सही पर यादों में खो जा रहा हूँ। जब हम सातधार पहुंचने वाले थे तो हमें सुरक्षा बलों का कैम्प मिला उसे देख कर मानो ऐसा लग रहा था जैसे की हम किसी और देश में प्रवेश कर रहे हैं। सड़क के दोनों तरफ गुलमोहर के पौधे बहुत ही खुबसुरत लग रहा था। हम लोग कैम्प पार किये और सातधार के पुल पर पहुँच गये। ऊपर जो तस्वीर देख रहे हो वह तस्वीर पुल के उपर से पश्चिम की ओर मैंने खीचा था। बहुत ही खुबसुरत जगह है जिसे देख कर मेरा सारा थकान मानो कही चला गया। हम बाइक को पुल में ही साइड में रोक कर नज़ारे का मजा लेने लगे, सच कहूँ तो मेरे लिए जन्नत है, बहुत ही खुबसुरत, लोग उस जगह के बारे में सच ही कहते थे यह सही साबित हो रहा था। हम नदी और आस-पास के हरियाली को निहारते हुए खाने के लिए जो सामान साथ ले गये थे उसे खाने लगे। खाते-खाते वह अपनी पुराने दिन को बताने लगी, वह जब दंतेवाड़ा कॉलेज में पढाई कर रही थी तब अक्सर अपने दोस्तों के साथ सातधार आती थी, और मैं उसकी बातों को सुन रहा था।
हम काफी देर तक वहा पर रुके रहे, वक्त कैसे गुजर गया हमें पता ही नही चला, इस लिए हम दोनों ने वहा से वापस आने के बारे में बात किये और हम सातधार से निकल गये।
आज जब मैं सातधार की खूबसूरती को याद करता हूँ तो मन करता है उसके साथ फिर से एक बार चला जाऊं और वहा वक्त गुजारूं पर यह अब संभव नही है क्यूंकि मैं खुद के लिए समय नही निकाल पा रहा हूँ। पर हाँ अगर कभी उसके साथ जाने की मौंका मिले तो मैं कभी पीछे नही रहूँगा।
वैसे मैं चाहता हूँ की हम फिर से सफ़र में निकल जाए, खैर ये मेरी सोच है जिसे मैं आगे हकीकत करना चाहूँगा।