वो वहीं रह गई...

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मैं छोड़ आया उसे वहीं

“मैं छोड़ आया उसे वहीं” — एक यादों से भरा सफर

मैं छोड़ आया उसे वहीं,
उस झरने की कलकल में,
उस पहाड़ की चुप्पी में,
उस मंदिर की धीमी घंटियों में।

जहाँ हर बात अधूरी थी,
पर आँखें बहुत कुछ कहती थीं,
जहाँ मौन में भी मिलन था,
पर हाथ फिर भी खाली रह गए।

मैं लौट आया,
बिना उसके… पर खाली नहीं।
साथ ले आया उसकी हँसी की गूँज,
उसकी आँखों की चुप पुकार,
उसकी साड़ी की सरसराहट,
और नाम के बिना उसका नाम।

अब वो हर शाम मेरे संग उतरती है,
कभी धूप में, कभी चाय की भाप में,
कभी खिड़की से आती हवा में,
कभी मन की उस कोर में जहाँ कोई नहीं जाता।

मैं छोड़ आया उसे वहीं…
पर उसकी यादें नहीं छोड़ पाई मुझे।



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लेखक: रवानी सफ़र
“कभी शब्दों में, कभी सफ़र में — मैं खुद को ढूंढता हूँ।”

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