वक़्त बदला है, मैं नहीं,,,

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वक़्त बदलता है, लोगों की सोच बदलती है, रिश्तों की परिभाषाएँ बदलती हैं, पर मैं... मैं आज भी वहीं खड़ा हूँ, जहां कभी अपनेपन की नींव रखी थी।
लोग कहते हैं "अब तू पहले जैसा नहीं रहा।"
मैं मुस्कुरा देता हूँ, क्योंकि मुझे पता है, बदला वक़्त है, मैं नहीं।

मैं आज भी उसी सच्चाई में जीता हूँ जहाँ दोस्ती मतलब भरोसा था, प्यार मतलब समर्पण था, और वादे मतलब ज़िम्मेदारी।
आज के रिश्ते शायद इंस्टेंट कॉफी जैसे हो गए हैं, झटपट बनते हैं, झटपट खत्म।
पर मैंने अब भी दिल से निभाना नहीं छोड़ा।

मैं आज भी चुप रहना पसंद करता हूँ जब लोग मुँह पर हँसते हैं और पीठ पीछे वार करते हैं।
क्योंकि मुझे आज भी यकीन है कि सच्चाई देर से सही पर जीतती ज़रूर है।

वक़्त ने मेरे आसपास की दुनिया को जरूर बदल दिया,  चेहरे बदल गए, आवाजें बदल गईं, भावनाओं की भाषा बदल गई...
पर मेरा वजूद अब भी वैसा ही है, सच्चा, शांत, और शायद थोड़ा अकेला।

मैं वही हूँ...
जो बिना कहे सब समझ जाता है,
जो दूसरों के दर्द में भी खुद को भूल जाता है,
और जो आज भी पुरानी बातों में सुकून ढूंढता है।

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