हम एक-दूसरे को लगभग तीन महीने से जानते हैं, और यह वाकया काफी दिलचस्प है क्योंकि मैंने झूठ की बुनियाद पर बात शुरू की थी। लेकिन जब हमारे बीच लगातार बातचीत होने लगी तो मैंने धीरे-धीरे सारी सच्चाई बता दी। मुझे इस बात का दुःख है कि मैंने उसे अपने बारे में झूठ बोला था, पर यह मेरी आदत है कि मैं किसी को अपने बारे में तब तक नहीं बताता, जब तक मुझे उस पर भरोसा न हो जाए।
मुझे इस समय एक घटना याद आ रही है जब मैं वर्धा हायर एजुकेशन के लिए गया था। तब मैंने एक लड़की को छ: महीने तक लगातार झूठ बोलकर खुद को एक पाँचवीं फेल गाँव के लड़के के रूप में पेश किया। वह लड़की मेरी बातों पर यकीन कर लेती थी क्योंकि मेरा बोलने का अंदाज गाँव वालों जैसा था—टूटी-फूटी हिंदी और बातों में उसके प्रति इज्जत। शायद यही वजह थी कि उसने मुझ पर भरोसा किया। वह लड़की हमेशा अपने बारे में सच बताती थी, और मुझे इस बात का पता तब चला जब मैंने अपने दोस्त से उसके बारे में जानकारी ली, जो उसी कॉलेज में पढ़ता था।
उस लड़की से भी मेरी पहचान सोशल मीडिया के जरिए हुई थी, और हम दोनों रोज़ फेसबुक पर बात करते थे। खैर वो एक अलग कहानी है, जिसके बारे में किसी और दिन बताऊंगा।
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एक शाम की बात है, मैं ऑफिस का काम खत्म कर अपने एक दोस्त के साथ शहर के एक गार्डन में घूमने चला गया। वहाँ पहुँचकर देखा कि लड़के-लड़कियाँ बैठे थे और सब अपने आप में मस्त थे। हम दोनों मस्ती करते हुए गार्डन में इधर-उधर घूम रहे थे। तभी अचानक दोस्त का मोबाइल बजा, उसने जेब से निकालकर कॉल पर बात करनी शुरू कर दी। मैं भी अपना मोबाइल निकालकर इधर-उधर स्क्रॉल करने लगा। कुछ देर बाद हम झूलों में जाकर बैठ गए और सोशल साइट पर स्क्रॉल करने लगे। तभी मैंने देखा कि एक लड़की ऑनलाइन है, बिना कुछ सोचे मैंने उसे "HI..." लिखकर भेज दिया। उधर से जवाब में "HI.." आया। मैंने अपने दोस्त को बताया कि मैंने एक लड़की को मैसेज किया था और वो बात कर रही है। दोस्त ने कॉल खत्म कर दिया और मैंने उसे मोबाइल दे दिया कि अब तुम बात करो। अब दोस्त मेरे बदले उस लड़की से बात करने लगा। हम उससे उसके बारे में पूछ रहे थे और वह भी मेरे बारे में पूछ रही थी। जब उसने मेरे काम के बारे में पूछा, तो मैंने दोस्त से कहा कि उसे बताओ कि मैं बेरोज़गार हूँ। उसने वैसा ही मैसेज कर दिया। जब हमने उससे पूछा कि वह क्या करती है तो उसने भी कहा कि वह भी बेरोज़गार है।
काफी देर बात करने के बाद दोस्त ने मुझे मोबाइल थमा दिया और फिर मैं खुद उससे बात करने लगा। हम दोनों एक-दूसरे से काफी सवाल-जवाब कर रहे थे। मैंने अपना नाम और पता सही बताया पर अपने काम के बारे में कुछ नहीं बताया।
जब एक दिन मैंने सच्चाई बताई तो उसने कहा कि उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं क्या करता हूँ क्या नहीं क्योंकि जो भी करता हूँ, अपने लिए करता हूँ, उसके लिए नहीं। उसकी बात मुझे सही लगी और मैंने सिर्फ 'हाँ' कहकर जवाब दिया। जब हम उस लड़की से बात कर रहे थे, तभी दोस्त का फोन फिर से बजा और हम दोनों गार्डन से रूम की ओर चल दिए क्योंकि दोस्त की गर्लफ्रेंड उससे मिलने आ रही थी।
हमारी पहली बातचीत इसी तरह से हुई थी जिसके बाद काफी दिनों तक हमारी बातचीत बंद थी। फिर अचानक एक दिन मैंने उसे मैसेज किया "HI, कैसे हो?" उसने जवाब में "HI ठीक हूँ" लिखा। मुझे याद है कि उस दिन मैं अपने गाँव और घर को बहुत याद कर रहा था। उस दिन मैं ऑफिस से लगभग 7:30 बजे रूम पहुँचा था और बहुत थका हुआ था इसलिए पहुँचते ही बिस्तर पर लेट गया। थकावट इतनी थी कि कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला। जब उठा, तो देखा कि रात के 9 बज रहे थे। सिर में हल्का दर्द था और खाना बनाने का मन नहीं कर रहा था इसलिए लेटे-लेटे ही Instagram पर वीडियो देखने लगा। तभी मुझे बात करने का मन हुआ तो मैंने घर कॉल किया, लेकिन किसी से बात नहीं हो पाई। फिर Instagram पर देखा कि कौन ऑनलाइन है और उस लड़की को ऑनलाइन देखकर मैंने उससे बात शुरू की।
उस दिन मैंने उसे अपने बारे में सब कुछ बता दिया और यह भी कहा कि मैं अपने घरवालों को बहुत याद कर रहा हूँ। हम दोनों काफी देर तक बात करते रहे और मैं धीरे-धीरे सब कुछ अपने बारे में बता रहा था और वह भी एक-एक करके अपने बारे में बता रही थी।
