गुजरा हुआ जमाना फिर याद आ रहा है, सालेमेटा डैम का वह खूबसूरत सफर ( ग्यारहवां पन्ना )

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सितंबर का महीना था। कई दिनों से कहीं घूमने नहीं गए थे, इसलिए जब वह कॉलेज से घर आई, तो हमने तय किया कि पास के एक जलाशय घूमने के लिए जाएंगे। अगले दिन तय समय पर हम अपने खूबसूरत सफर पर निकल पड़े। हमें करीब 120 किलोमीटर बाइक से यात्रा करनी थी। मैं उसे तैयार होकर बस स्टैंड से लेने गया और फिर हम दोनों सफर पर निकल पड़े।

रास्ते में सड़क किनारे गाँव की महिलाएँ अपने घरों में उगाई ताज़ी सब्ज़ियाँ बेच रही थीं। यह दृश्य मेरे लिए अद्भुत था। हम मैम देखते हुए जा रहे थे पर मैप हमें जलाशय के दूसरी ओर ले गया, जिससे हमें गाँव के एक महिला से रास्ता पूछना पड़ा और फिर हम उसके बताये रास्ते पर निकल पड़े। लगभग 10-15 मिनट के सफर के बाद हम आखिरकार जलाशय के उस किनारे पहुँच गए, जहाँ हमें जाना था।


जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, शहर की हलचल पीछे छूटती जा रही थी और हम प्रकृति की गोद में समाते जा रहे थे। गाँव के किनारे फैले खेत, हरी-भरी वादियाँ और मिट्टी की सौंधी खुशबू हमारे सफर को और भी सुखद बना रही थी। हमें गाँव की सादगी और खूबसूरती हमेशा से भाती है, शायद इसलिए भी यह यात्रा हमें और खास लग रही थी। हम गूगल मैप की सहायता से आगे बढ़ रहे थे क्योंकि उसे रास्ता ठीक से याद नहीं था। कई साल हो गए थे उसे वहाँ गए हुए, लेकिन जैसे-जैसे हम बढ़ते जा रहे थे, उसकी धुंधली यादें ताजा होती जा रही थीं।

जलाशय में प्रवेश से पहले हमें टिकट लेना था। हमने बाइक खड़ी की और टिकट लेने गए। वहाँ से जलाशय का कुछ हिस्सा दिख रहा था, जिसे देखकर मन को शांति मिली। टिकट लेकर हम जलाशय के किनारे बागीचा में जाकर बैठ गए। मुझे प्यास लगी, तो मैंने उससे पानी की बोतल को बैग से निकालने के बोला और पानी पीने लगा। खाने के लिए हम दूकान से लाईट चिवड़ा खरीद लिए थे। जिसे निकाल कर खाने लगे। हम वहाँ काफी देर तक बैठे रहे, जब तक कि धूप तेज़ नहीं हो गई। जब तेज़ धूप असहनीय हो गई, तो हमने छाँव की तलाश की और एक घने पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए।

इसी दौरान मेरे ऑफिस से फोन आया और मैं बार-बार मोबाइल को देखने लगा। वह मुझे फोन देखने से मना कर रही थी, लेकिन मैं उसकी बात को अनसुना कर रहा था। कुछ देर तक यह सिलसिला चलता रहा, फिर हमने जलाशय के दूसरे छोर पर जाने का निर्णय लिया और बाइक की ओर लौट आए।



 
दूसरा छोर पहले से भी ज़्यादा खूबसूरत था। वहाँ पहले से एक कपल एक-दूसरे की तस्वीरें खींच रहे थे। हम करीब 300 मीटर पैदल चलकर उस जगह पहुँचे, तो दृश्य हमारी उम्मीद से भी अधिक सुंदर था। दूर से ही नाव दिखाई दे रही थी। मैंने पहली बार नाव को इतने करीब से देखा था। मैंने उसे नाव में चढ़ने को कहा, और वह हँसते हुए नाव पर बैठ गई। मैं मोबाइल निकालकर उसकी तस्वीरें खींचने लगा। वह दृश्य इतना मनमोहक था कि मैं शब्दों में उसे पूरी तरह बयाँ नहीं कर सकता। हम वहाँ देर तक बैठे रहे, ठंडी हवा को महसूस करते रहे और उन लम्हों को जीते रहे। वह दिन मेरी यादों में हमेशा बसा रहेगा। इसलिए इन खूबसूरत पलों को शब्दों में समेट रहा हूँ, ताकि यह यादें हमेशा जीवंत बनी रहें। 


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