पहले सपने बुने फिर हकीकत करने चल पड़े

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alt="बस्तर यात्रा की यादों और बाइक सफर का सुंदर दृश्य"


सपनों की राह पर: बस्तर की यादों से हकीकत तक का सफर

कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुझे छत्तीसगढ़ से बाहर जाकर आगे की पढ़ाई करने का मौका मिला। मैंने दो साल होस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई जारी रखी। इस दौरान मैं सोशल मीडिया पर सक्रिय रहा, जहाँ देशभर के लोग मेरे फ्रेंड लिस्ट में जुड़ते गए।

बस्तर के कई लोग भी मुझसे जुड़े। जब भी उनके प्रोफाइल पर बस्तर की खूबसूरत तस्वीरें साझा होतीं, तो मेरे मन में बार-बार यही ख्याल आता कि मैं इन जगहों को अपनी आँखों से कब देखूंगा।

घर वापसी और बदले हालात

दो साल बाद जब मैं अपने गाँव लौटा, तो ये सपने कहीं खो से गए थे। क्योंकि घर लौटने के बाद परिस्थितियाँ वैसी नहीं थीं जैसी मैं सोचकर आया था।

मैं करीब सात साल तक घर पर ही रहा और इस दौरान कभी भी नौकरी को लेकर गंभीर विचार मन में नहीं आया। लेकिन वक्त के साथ परिस्थितियाँ बदलीं — और मुझे नौकरी के लिए घर से बाहर निकलना पड़ा।

बीते वर्षों की झलक और अधूरे सपने

आज जब मैं अपनी ज़िंदगी के पिछले कुछ सालों को पलट कर देखता हूँ, तो वही पुरानी बातें और अधूरे सपने फिर से याद आ जाते हैं। वे सपने, जिन्हें कभी दूर समझता था, अब धीरे-धीरे हकीकत बन रहे हैं।

और इस सबके पीछे जो शख्स है, वह मेरे जीवन में बेहद अहमियत रखता है — शायद वही वजह है कि मैं फिर से अपने सपनों को जीने की हिम्मत जुटा पाया हूँ।

निष्कर्ष: सपनों का सफर कभी खत्म नहीं होता

ज़िंदगी कभी सीधी रेखा नहीं होती, इसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। पर अगर आपके भीतर जीने और सपने देखने की जिद बाकी है, तो राहें खुद बन जाती हैं।

आज जब मैं बस्तर की वादियों में बाइक चलाते हुए हवा को महसूस करता हूँ, तो लगता है — सपनों को थामे रहना ही असली सफर है।



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✍️ — रवानी सफ़र

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